एमएसपी से दोगुना भाव पर बिक रही है कपास, ‘सफेद सोने’ के किसानों के चेहरे खिले

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    जयपुर। ‘सफेद सोना’ कही जानी वाली कपास फसल की कीमतों में रिकॉर्ड तेजी से इन दिनों देशभर के किसानों के चेहरे खिले हुए हैं।

    राजस्थान से लेकर पंजाब व हरियाणा से लेकर मध्य प्रदेश तक देश की प्रमुख मंडियों में कपास के भाव में जबर्दस्त उछाल आया है। खरगोन मंडी में इसी सप्ताह यह 11,115 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए। यह कपास के 5,726 रुपये के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की तुलना में लगभग दोगुना भाव है।

    भारत दुनिया का सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है। जानकारों के अनुसार, बुवाई क्षेत्र में कमी और बेमौसमी बारिश के कारण इस साल कपास उत्पादन अपेक्षाकृत कम रहने का अनुमान है। वहीं घरेलू स्तर पर स्पिनिंग मिलों व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती मांग से इसके भावों में जबर्दस्त उछाल आया है।

    सफेद सोने की खान कही जाने वाली मध्य प्रदेश की खरगोन मंडी में इसी सप्ताह कपास की एक ढेरी रिकॉर्ड 11,115 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिकी। वहीं नरमे कपास की बंपर फसल के कारण ‘कपास पट्टी’ से विख्यात राजस्थान की गंगानगर मंडी में शुक्रवार को नरमे की एक ढेरी की बोली 10,501 रुपये प्रति क्विंटल लगी। भाव के लिहाज से यह भी अब तक का रिकॉर्ड है।

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    केंद्र सरकार ने 2021-22 विपणन सत्र के लिए कपास का समर्थन मूल्य 5,726 रुपये से लेकर 6,025 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। सरकार की ओर से भारतीय कपास निगम एमएसपी पर खरीद करता है। लेकिन खुले बाजार में व्यापारी इससे कहीं अधिक दाम देकर कपास खरीद रहे हैं।

    खरगोन के कृषि उपनिदेशक एम एल चौहान ने कहा, ‘‘मंडी में कपास की 11,511 रुपये प्रति क्विंटल की बोली … इस सीजन और संभवत: अब तक की सबसे ऊंची बोली है।’’

    गंगानगर कृषि उपज मंडी समिति के सचिव शिव सिंह भाटी के अनुसार, शुक्रवार को नरमे कपास की एक ढेरी 10,501 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बिकी।

    पड़ोसी राज्य पंजाब में भी हालात कमोबेश ऐसे ही है। फाजिल्का आढ़तिया संघ के जिला अध्यक्ष अनिल नागौरी ने कहा, ‘‘उत्पादन कम और मांग ज्यादा होने के कारण कपास के भावों में उछाल है। हमारे इलाके में भी भाव 9,600 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास हैं।’ निश्चित रूप से कीमतों में तेजी से किसान खुश हैं।

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    गंगानगर के प्रमुख कपास कारोबारी संजय महिपाल ने बताया, ‘‘कपास निगम के पास कपास का भंडार नहीं है। उत्पादन कम रहने की आशंका के बीच घरेलू मिलों की बढ़ी मांग से कपास कीमतों में उछाल है और इसका भारी फायदा किसानों को मिल रहा है।’’

    कपास निगम के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार, मौजूदा 2021-22 विपणन वर्ष में देश में 120.69 लाख हेक्टेयर में कपास की बुवाई हुई है, और उत्पादन 362.18 लाख गांठ रहने का अनुमान है। हालांकि, महिपाल ने कहा कि मंडियों में आवक व व्यापारियों को मिल रही सूचनाओं के हिसाब से वास्तविक उत्पादन इससे कहीं कम रहेगा। इसकी एक बड़ी वजह समय पर बारिश नहीं होने व बेमौसम की बरसात से फसल को हुआ नुकसान है।

    उल्लेखनीय है कि देश के नौ प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब व हरियाणा शामिल हैं। कपास उत्पादक व खपत समिति (सीओसीपीसी) के आंकड़ों के अनुसार, देश में 2020-21 में 130.07 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती हुई और उत्पादन 353.84 लाख गांठ (अनंतिम) रहा। मौजूदा विपणन वर्ष में यह 362.18 लाख गांठ रहने का अनुमान है। कपास विपणन सत्र अक्टूबर से सितंबर तक चलता है और एक गांठ 170 किलो की होती है। कपास के हाइब्रिड रूप को पंजाब, हरियाणा व राजस्थान में नरमा कहा जाता है।

    हालांकि, कपास के भावों में इस तेजी से जहां किसानों को फायदा है वहीं कपास आधारित उत्पादों के दाम बढ़ने लगे हैं। नागौरी के अनुसार, बिनौला जो कभी 3,000 रुपये क्विंटल हुआ करता था इन दिनों 4,400 रुपये प्रति क्विंटल तक बिक रहा है। इसके साथ ही रूई, धागे जैसे अन्य उप-उत्पाद भी महंगे होने लगे हैं। संजय महिपाल के अनुसार, सरकारी स्तर पर कुछ कदम उठाए जाने की जरूरत है ताकि कीमतों में इस तेजी का नुकसान किसी को नहीं हो।

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    उन्होंने कहा कि स्थानीय कीमतों में तेजी भारत से कपास निर्यात को प्रभावित कर सकती है। भारतीय कपास के प्रमुख आयातकों में बांग्लादेश, चीन व वियतनाम हैं, जो यहां दाम बढ़ने पर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की ओर रुख कर सकते हैं।

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